विवाद का समाधान स्थानीय स्तर पर किया जाए : रमेश चन्द्र लाहोटी
10 जनवरी, 2018 को नई दिल्ली में आयोजित ‘न्याय चौपाल’ की राष्ट्रीय बैठक में न्याय चौपाल के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश श्री रमेश चन्द्र लाहोटी जी का उद्बोधन
बहुत अच्छा लगा आप सब लोगों से मिलकर और आपके बारे में जानकर। इतने सब लोग जब एक जगह इकट्ठा होते हैं तो बड़ी प्रसन्नता इसलिए होती है कि अपना एक बड़ा आत्मविश्वास जागृत होता है। People from different walks of life, people from different regions of country मैं ये नोट कर रहा था, मेरा ख्याल है, भारतवर्ष का कोई शायद कोई महत्त्वपूर्ण प्रदेश बचा हो जिसका प्रतिनिधित्व आज यहां नहीं है। आज की मीटिंग को हम बिल्कुल नेशनल मीटिंग कह सकते हैं। राष्ट्रीय सभा अपनी हो गई है। और Judges, Advocates, IAS officers, Professors, Civil Services, Vice Chancellors, Air Commodore, Journalists, I.T. Advisors and what not. यानी हर क्षेत्र का व्यक्ति आज यहां उपस्थित हैं।
और विशेष उल्लेखनीय बात यह है कि आज के समय में सबसे ज्यादा यदि किसी के पास कमी है तो समय की कमी है। पर आप सब लोग दूर-दूर से अपना समय देकर, श्रम देकर, अपना खर्चा करके यहां सब आए हैं। सिर्फ एक कारण है कि अब हम सबके मन में कुछ करने की चाह है। और हमको ऐसा लगता है कि यहां हम कुछ कर सकते हैं।
अभी भाई गोविंदजी ने मेरा परिचय आपको दिया। 2005 में मैं सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के पद से रिटायर हुआ, 12 वर्ष लगभग मुझे हो गए, तो मेरी और आप सब लोगों के मन में, आप लोग भी जो बड़े-बड़े पद धारण कर चुके हैं और वहां से अवकाश प्राप्त किया और यहां आए हैं।
तो मुझे यहां ऐक शे’र याद आता है। किसी शायर ने लिखा है –
कि पहले तो कुछ और भी अरमान थे मरीज़-ए-ग़म के
अब तो बस एक तमन्ना है कि आराम न मिले।
कुछ करना है बस। अब तक बहुत कुछ कर लिया। उससे तसल्ली नहीं हुई फिर भी कुछ करना है। तो हम सबके मन में कुछ-न-कुछ करने की चाह है। इसलिए हम लोग यहां इकट्ठा हुए हैं।
अभी अशोकजी से कल ही संपर्क हुआ और आज यहां मौजूद हैं। बहुत प्रतिष्ठित चाटर्ड एकाउंटेंट हैं। किसी बात की कमी नहीं है। ईश्वर की कृपा है। मेरी इनसे बात हो रही थी अनौपचारिक। एक उदाहरण दे रहा हूं आपको कि हम लोग क्या करना चाहते हैं और कैसे? तो मैंने इनसे पूछा कि आप अपने प्रोफेशन के अलावा कुछ करते हैं क्या? तो मुझे बोले कि मेरे को एक बड़ी चिंता रहती है कि हमारे समाज में जो मध्यमवर्गीय महिलाएं हैं,- मध्यमवर्गीय महिलाएं जो बहुत संपन्न महिलाएं हैं, उन्हें कोई समस्या नहीं है, जो बहुत नीचे के तबके की महिलाएं हैं मेहनत-मजदूरी करती हैं, गुजारा करती हैं, अपना परिश्रम करती हैं, कमाती हैं, खर्च करती हैं। पर जो मध्यम वर्ग की महिला है वे न इधर हैं न उधर हैं। और उसके साथ जो ज्यादती होती है उसका समाधान खोजने की दिशा में मेरा मन निरंतर लगा रहता है कि मैं क्या कर सकता हूं, मुझे क्या करना चाहिए?
तो मैंने उन्हें फिर न्याय चौपाल के बारे में जानकारी दी कि हम लोग जो काम कर रहे हैं वो इससे भी आगे बढ़कर है, केवल मध्यम वर्ग की महिलाएं नहीं, समाज का कोई भी किसी भी वर्ग का सदस्य हो, पुरुष हो या स्त्री हो, उनकी समस्याओं का समाधान करने का उद्देश्य हमारा यही है तो उन्होंने कहा मैं जरूर आना चाहूंगा। जरूर इससे जुड़ना चाहूंगा। और जो भी मैं कर सकता हूं जरूर करूंगा। आपसे संपर्क हुआ और आज यहां आ गए। बहुत व्यस्त व्यक्ति हैं पर उन्होंने कहा कि इस काम के लिए मैं जरूर समय दूंगा। तो हममें से सभी की स्थिति यही है कि हम सब लोग कुछ-न-कुछ करना चाहते हैं।
मैं एक बड़ा रोचक उदाहरण आपको दूं। आप सब लोग अपने-अपने तरीके से कुछ-न-कुछ कहीं-न-कहीं कर रहे हैं। ये आपने अपने परिचय में बताया। सदा साहब है, ये हमसे जुड़ने से पहले ही वो यही काम कर रहे थे और अपने गांव में अपने क्षेत्र में कई संगीन अपराध के मुकदमे भी जो दण्डनीय अपराध हैं जिनमें जमानत भी नहीं हो सकती, वो भी आपलोगों ने अपने प्रयास से और गांव में ही बैठकर सुलझा दिए। उनकी कुछ जानकारी ये जो आज हैंडबुक निकली है इसमें उल्लेख है।
मैं आपको बड़ा रोचक उदाहरण देना चाहता हूं कि कई समस्याएं हमारे देश में हैं। एक बार, पुणे में एक संत हैं मैं उनका बड़ा सम्मान करता हूं, उनके पास गया मैं। मैंने उनसे पूछा कि ये जो समस्याएं हैं इनके समाधान के लिए काम तो हो रहा है पर कैसा काम हो रहा है कि जैसे जमीन में जगह-जगह गड्ढे बने होते हैं, थोड़ा-थोड़ा पानी सब में भरा होता है, कोई तालाब तो नहीं होता है, कोई कुंआ तो नहीं होता तो सबकी प्यास बुझाने की क्षमता किसी एक गड्ढे में नहीं होती तो ये छोटे-छोटे जो काम अलग-अलग जगह हो रहे हैं इससे हमारी जो समस्याएं हैं कैसे मिटेंगी? तो उन्होंने जो उत्तर दिया वह बड़ा सुंदर है। वो मेरा नाम लेकर बोले कि देखिए कभी जब जोर की बरसात होगी तो यह सब पानी भर जाएगा। और जितने छोटे-छोटे गड्ढे हैं वो सब मिलकर एक तालाब हो जाएंगे, सबका पानी एक-दूसरे से मिल जाएगा, तो हमारा जो उद्देश्य है, हम जो सब लोग इकट्ठे हैं, हमारा उद्देश्य ये है कि अलग-अलग हम जो काम कर रहे हैं या नहीं कर रहे हैं, तो करना चाहते हैं, ये हमारा काम एक सामूहिक होकर एक राष्ट्रीय आंदोलन का रूप ले सके। राष्ट्रीय आंदोलन की चर्चा करते ही डॉ. कृष्णगोपालजी आ गये। हम सब लोग मिल-जुलकर कुछ काम करना चाहते हैं। सबसे पहले इसके पीछे डॉ. साहब की कहीं न कहीं प्रेरणा है। गोविंदजी से एक बार मुलाकात हुई तो हमलोगों को दोनों की विचारधारा समान दिखी, हमलोगों ने आपस में विचार-विनिमय किया। हमने कहा कि हमें यह काम शुरू करना चाहिए।
यह जो हमारा अभियान है, इसे हम एक आंदोलन ही कहेंगे- न्याय चौपाल। और इसका जो शीर्ष वाक्य है, जो guideline है – ‘’विवाद नहीं, संवाद’’। हम ये चाहते हैं कि हम उन सब बातों पर नहीं जाना चाहते, हमारे देश में कितने मुकदमे चल रहे हैं, उन मुकदमों के समाधान में क्या परेशानियां हैं?
कल का समाचार कहता है कि इलाहाबाद कोर्ट में 40 साल की अपीलें पेंडिंग हैं। चालीस-चालीस साल के? Criminal appeal pending हैं। लोगों ने अपनी सजा पूरी काट ली। अब उनकी अपील मंजूर हो या खारिज हो, उन्हें कोई फर्क पड़ने वाला नहीं। वे तो सजा काट चुके अपनी। तो ऐसी स्थिति में उनका चर्चा करना हमारा उद्देश्य नहीं है। हम, जो न्याय व्यवस्था हमारे देश की, उसका हम कोई पुनरीक्षण नहीं करना चाहते, उसमें कोई सुधार करना हमारा उद्देश्य नहीं है, जो चल रहा है अच्छा है, चलता रहे। हमारा उद्देश्य उससे भी एक कदम पहले का है, हम ये चाहते हैं कि कोई भी विवाद उत्पन्न हो किसी भी प्रकार का, उसका समाधान स्थानीय स्तर पर किया जाए, वो विवाद न्यायालय तक पहुंचे ही नहीं। पहला प्रयत्न हमारा यही है, पुलिस- न्यायालय तक पहुंचे ही नहीं। और दूसरा कदम हमारा यह है कि जो पहुंच चुके हैं, उनको लौटाया जाए। और जो विवाद के पक्ष हैं उनको परस्पर बैठाकर विवाद का समाधान किया जाए संवाद के द्वारा, और उन्हें प्रेरित किया जाए कि न्यायालय से अपना विवाद आप वापस ले लें और यहीं गांव में एक पारिवारिक वातावरण में बैठकर विवाद का समाधान कर लें।
कभी-कभी शुरुआत की जाती थी तो हमलोग सोच सकते थे कि क्या ये संभव होगा? परंतु लगभग पिछले छह महीने में जो प्रगति हुई है, जितने प्रयास हुए हैं उससे लगता है कि ये पूरी तरह संभव है। जो हमको परिणाम मिले हैं बहुत उत्साहवर्धक हैं। जानकारी इस guidebook में आपको मिलेगी। अनेक प्रकरण ऐसे हैं जो लगता था कि समाधान नहीं होगा पर हो गया। मोटे-मोटे तौर पर हमारा कोई ऐसा न तो कोई कानून है जिससे हम कोई शासित होते हैं, न तो हमें किसी कानून का पालन करना है, न हमारी कोई निश्चित नियमावली है, मोटे-मोटे तौर पर गाइडलाइन्स हैंडबुक में दी गई हैं।
प्रारंभ में हमने सोचा था कि हम एक या दो गांवों में अपना काम शुरू करेंगे। एक या दो गांवों को विवादमुक्त बनाएंगे। और उन गांवों में जो काम हम कर पाएंगे उसको हम एक role model के रूप में बाकी स्थानों पर उनके सामने रखेंगे कि ये काम हो सकता है और इसके बाद हम धीरे-धीरे प्रसार करेंगे पर बहुत रोचक बात है हमारे इस काम की गति। कई जगह तो क्या होता है कि हम प्रयास करते हैं काम बढ़ाने का, लेकिन बढ़ ही नहीं पाता, यहां स्थिति यह है कि हम प्रयास कर रहे हैं रोकने का और वो बढ़ता जा रहा है। इससे लगता है कि लोगों के मन में इस प्रकार की पद्धति से समाधान करने के प्रयास को वो स्वागतयोग्य मानते हैं कि ये संभव है, ये किया जा सकता है और करना चाहिए।
व्यक्तिगत कुछ अनेक-अनेक अनुभव हुए हैं। पिछली बार की मिटिंग्स में हमलोगों ने कुछ चर्चाएं भी की थीं, कुछ उदाहरण सुने भी थे, कुछ हैंडबुक में प्रकाशित भी हुए हैं। तो मोटे तौर पर पद्धति ये होगी कि हमलोग जहां करना चाहते हैं उस गांव में, उस क्षेत्र में जाएं, वहां के स्थानीय लोगों का विश्वास अर्जित करें, इस विचारधारा से उन्हें परिचित कराएं। वहां के प्रत्येक गांव में, प्रत्येक बस्ती में कुछ ऐसे लोग जरूर होते हैं जिनका बहुत आदर होता है और लोग जिनकी बात मानते हैं, ऐसे लोग विवादों से दूर रहना चाहते हैं, हम भी उन्हें विवाद में नहीं डालना चाहते पर हम उनकी प्रतिष्ठा और उनके प्रभाव का प्रयोग विवादों के समाधान के लिए करना चाहते हैं तो जब भी कोई विवाद आता है तो उस विवाद का स्वरूप समझकर हमलोग स्थानीय प्रमुख व्यक्तियों का सहयोग और जो पक्षकार हैं वो और उनके परिवार के सदस्य उन सबको जोड़कर एक बार-दो बार-तीन बार चर्चा करके उनको हम कानून की स्थिति बताएं कि यदि विवाद कोर्ट में भी गया तो परिणाम यही होना है क्योंकि कानून ये कहता है। कुछ ले-देकर, थोड़ा फायदा उठाकर, थोड़ा नुकसान उठाकर भी नतीजों में फायदा ही होगा, जितना समय और पैसा मुकदमों में खर्च करोगे।
अभी मैं डॉ. कृष्णगोपालजी का वक्तव्य हैंडबुक में पढ़ रहा था कि 15 रुपए का, 14 रुपए का जुर्माना बचाने के लिए एक महाशय ने 500 रुपए की फीस देकर वकील किया। पर बोले, 15 रुपए जुर्माना नहीं दूंगा। Ego होती है या कभी-कभी प्रतिष्ठा का प्रश्न बन जाता है जिसके कारण ये विवाद होते हैं। तो प्रत्येक प्रकरण विशेष में, विवाद विशेष में विवाद का कारण खोजकर समाधान की पद्धति हम निकालें और निकालकर विवाद का समाधान करने का प्रयास करें। और जैसे-जैसे सफलता मिलती जाएगी और जैसे-जैसे लोगों को ये पता चलता जाएगा कि ये अच्छे लोग हैं, अच्छी भावना से हमारे बीच आकर काम कर रहे हैं और हमारे भले के लिए कर रहे हैं तो हमारी मान्यता वहां बढ़ने लगेगी, और लोग अधिक से अधिक संख्या में हमारे पास आने लगेंगे।
हम लोग totally apolitical हैं। राजनीति से हमारा कुछ लेना-देना नहीं है। किसी भी प्रकार का राजनीतिक-लाभ उठाने का तो प्रश्न ही नहीं है और किसी राजनीतिक मंच या राजनीतिक दल से हमारा कोई जुड़ाव नहीं है। इस काम में जो भी चाहे, भले ही वो किसी पार्टी विशेष का हो, किसी पार्टी में पद धारण करता हो, हमें उससे कोई परहेज नहीं है, वो आए और यदि वो इस बात से सहमत है कि विवादों का समाधान संवाद से होना चाहिए उसका सहयोग लेने के लिए हम तत्पर हैं, उसका स्वागत है।
हम धीरे-धीरे अपना काम बढ़ाना चाहते हैं क्योंकि हम ऐसा नहीं चाहते कि हमारा काम नियंत्रण से बाहर हो जाए। काम चले, चलता रहे। जो काम कर रहे हैं उसकी जानकारी हमको मिले और इसमें मोटे तौर पर हैंडबुक में कुछ प्रारूप भी दिए गए हैं। भाई गोविंदजी ने कुछ बनाए हैं कि जो पक्ष होंगे वो एक सहमति-पत्र हमको सौपेंगे कि हमारा यह वादा है, हम आपको सौंपना चाहते हैं। और फिर जो समाधान होगा उसको लिखकर उनका एक हस्ताक्षर भी करा लेंगे और उन्हीं को दे देंगे। तो उनसे यह उन्हें पता रहे कि हमारा यह विवाद था और इस प्रकार से इन लोगों के हस्तक्षेप से विवाद का समाधान हो गया।
तो मोटे तौर इस प्रकार की हमारी ये कार्यपद्धति है। और आप सब लोगों की उपस्थिति का उद्देश्य यही है कि हमलोग एक-दूसरे को जानें, जानने के अलावा हमलोग क्या करना चाहते हैं, किस विचार से ये ‘न्याय चौपाल’ का काम जो धीरे-धीरे बढ़कर एक आंदोलन का एक रूप लेगा, शुरुआत हुई। इसलिए आपलोगों के जो सुझाव होंगे, उनका भी स्वागत है, आप कुछ कहना चाहें, बताना चाहें, कि हमारी कार्यपद्धति ऐसी होनी चाहिए, उसका स्वागत है। उसका समावेश समय-समय पर हम करते रहेंगे। ये एक संक्षेप में जानकारी है, आप में से किसी को कोई जिज्ञासा हो, शंका हो, यदि आप पूछना चाहेंगे तो हम उसको चर्चा करके उसे भी स्पष्ट करने का प्रयास करेंगे।
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आप सब लोगों ने बहुत अच्छे विचार रखे और जो विचार रखे बिना किसी प्रकार की औपचारिकता के। बिल्कुल जैसा अंदर है वैसा ही बाहर। सहज भाव से आपने रखे। तो सहज भाव में सत्य झलकता है। जो आज की चर्चा का निष्कर्ष है वह यह है- जो मुझे लगा कि जैसे अभी डॉक्टर साहब ने आध्यात्मिकता का जिक्र किया कि हमारी संस्कृति तो यह कहती है कि आध्यात्मिकता के साथ कोई भी काम किया जाए तो सफल होता है। तो जब हम कोई सच्चे संकल्प और शुद्ध मन से कुछ करना चाहते हैं तो आध्यात्मिकता स्वयं जागृत हो जाती है और अधिकांशत: शुद्ध हृदय से किये गये काम में सफलता मिलती ही है। हमारा आज मिलने का उद्देश्य यही था और हम जब जब भी मिलेंगे उद्देश्य यही है कि एक-दूसरे के अनुभव से हम सीखें और जैसा डॉक्टर साहब ने अभी कहा कि आपके सुझाव क्या हैं, क्या करना चाहते हैं, कैसे करना चाहते हैं तो हमने यह अनौपचारिक इसलिए रखा है- जैसे इतने अनुभव आपने सुने तो किसी स्थान पर किसी समस्या विशेष को लेकर के जो एक strategy की बात कही गई, समाधान का तरीका वहीं सोचना पड़ता है कि यहां कौन सा तरीका कारगर होगा और किस तरीके का प्रयोग किया जाए। अधिकांशत: पारिवारिक विवाद के प्रकारों की चर्चा हुई है। हमने भी यही सबसे पहले शुरूआत की है कि पारिवारिक विवादों को सबसे पहले सुलझाया जाए। सामान्य विवाद, फिर पारिवारिक विवाद में जहां सम्पत्ति जुड़ गई तो सम्पत्ति के विवाद और धीरे-धीरे उसका विस्तार किया जाए। अब बस एक ही बात बचती है- थोड़ा सा हमारे इस organization के movement को एक organize करने की आवयकता है। और गोविंदजी से चर्चा हुई है कि हमारा एक central office होना चाहिये ताकि सबके अनुभव वहां आएं, उनका collection किया जाए, विधिवत classify करके उनको file किया जाए। emails आएं उनका जवाब दिया जाए। इस सम्बन्ध में प्रयत्न कर रहे हैं। क्योंकि society का registration हो गया है तो उस तरीके से भी किया जा सकेगा और जिसके भी मन में जैसा विचार आए, जैसा अभी डॉक्टर साहब ने कहा, जो case study बनाने के लिए, जो आपने सुलझाया है, उसको व्यवस्थित तरीके से लिखकर भेज दें तो record हमारा बनता जाएगा और थोड़े समय में हमको उससे भी आत्मविश्वास जागृत होगा। देखिए आज हमने 1000 विवाद का समाधान कर दिया है और कैसे-कैसे समाधान किया है। case study से हमको समझने में सुविधा रहेगी और आगे के लिए उसी अनुभव से हम सीख सकेंगे। तो हम लोग एक-दूसरे के सम्पर्क में रहेंगे, समय-समय पर मिलते रहेंगे और हमारे एक केंद्रीय कार्यालय की व्यवस्था हो जाती है, e-mail हो ही गया है और website भी हो गया है। इस पर आप जानकारी भेजते रहेंगे, जानकारी एकत्र रहेगी और हम लोग सब मिलते रहेंगे। तो आप सब लोगों ने अपना समय दिया। आप लोग आए, बहुत विचारों का विनिमय किया, इस सबके लिये आप सबका बहुत बहुत आभार।
धन्यवाद।
माननीय श्री रमेश चन्द्र लाहोटीजी का पूरा उद्बोधन सुनने के लिए निम्नलिखित लिंक पर क्लिक करें: